हे, विधाता ज्ञानदे मुझको
कौन धागे से बीनू चदरिया हरी भरी कुसुमित और जग मुस्कुराये
कौन राग छेड़ूँ कि जग हरित माधुर्य से भर जाये
कौन बीज बोउं भूमि पर विस्तार हरा अनंत हो जाये
कौन गीत गाऊँ कि झर झर निर्झर बहे
हे,विधाता! ज्ञान दे मुझको कि
इस धरा का वैभव हरा अमिट सदा अनंत रहे !
सुंदर सोच और अति सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुन्दर लालसा |
ReplyDeleteऐसी सुंदर सोच अगर कुछ पल के लिए हर मन में आ जाये तो भी इस दुनियाँ में बहुत कुछ बुरा घटित होना बंद हो जाए. सुंदर कल्पना को साकार किया है.
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